बरेली का इतिहास: नमस्कार मित्रो कैसे है आप सब दोस्तों आज के में हम बात करने वाले है बरेली के इतिहास के बारे में, दोस्तों बरेली प्राचीन काल में कौशल साम्राज्य का एक अभिन्न अंग था। भारतवर्ष अपनी विविधताओं के साथ अपना गौरवशाली इतिहास को अपने आप में समेटे हुये है, जहा ऐतिहासिक दृस्टि से देखा जाये तो जनपद बरेली का अतीत बहुत ज्यादा गौरवशाली और महिमामही रहा है।
पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा औध्योगिक दृष्टि से बरेली का अपना ही एक विशिष्ट स्थान है। जहा एक तरफ हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए बरेली का विशेष इतिहास रहा है। बरेली के उत्पत्ति या यू कह ले कि बरेली की स्थापना का इतिहास निम्न प्रकार से है।
बरेली उत्तर प्रदेश ?
उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित बरेली रामगंगा नदी तट पर स्थित है। बरेली नगर में रुहेलों का अतीत समाहित है। बरेली रोहिलखंड के ऐतिसाहिक क्षेत्र की राजाधानी था। जनपद बरेली का शहर महानगरीय है। बरेली उत्तर प्रदेश का 7वाँ तथा देश का 50वाँ बड़ा महानगरो में सम्मिलित है। बरेली जो की नाथ नगरी, जरी नगरी, और मेडिकल हब के रूप में भी जाना जाता है। 1537 में स्थापित बरेली शहर का निर्माण मुग़ल प्रशासक ‘मकरंद राय’ के द्वारा करवाया था।
उस समय यह क्षेत्र अठारहवीं शताब्दी के मध्य में रोहिलों के नियंत्रण में आ गया और इस तरह रोहिलखंड के रूप में जाना जाने लगा। सन 1774 में अवध के शासक ने अंग्रेज़ों की मदद से इस क्षेत्र को जीत लिया और 1801 में बरेली को ब्रिटिश क्षेत्र में शामिल कर लिया गया। जब मुग़ल सम्राटों का राज्य यहाँ चल रहा रहा तो उस समय में बरेली को फ़ौजी नगर के रूप में भी जाना जाता था। जो की अब वर्तमान में बरेली में एक फ़ौज की छावनी है। बरेली 1857 में ब्रिटिश शासन के समय में उनके ख़िलाफ़ हुए भारतीय विद्रोह का एक केंद्र का हिस्सा रहा था।
वही अगर बरेली के दूसरे कहावत या उसके इतिहास के बारे में जिक्र करू, तो सबसे पहले इसमें जगत सिंह कठेरिया का नाम आता है जिन्होंने करीब 1500ईस्वी के आसपास जगतपुर नामक के जगह की नींव डाली, जो आज की आज वर्तमान में पुराना शहर में एक मोहल्ले के रूप में जगतपुर नाम से मौजूद है। उसके बाद जगत सिंह कठेरिया के दो पुत्र हुए, जिनका नाम बास देव और बरल देव था और ऐसा माना जाता है कि इनके द्वारा ही बरेली की स्थापना की 1537ईस्वी में किया गया।
कहा जाता है कि बास देव और बरल देव ने यहाँ एक क़िला भी बनवाया था जो कि बाद में समाप्त हो गया। लेकिन जानकारी के लिए आपको बता दू कि यहाँ क़िला के नाम से एक मोहल्ला आज भी यहाँ स्थित है। जहाँ पुराने क़िले के कुछ अवशेष अभी भी देखने को मिल जाते हैं ।
बरेली का इतिहास इससे भी पुराना है जब यह बरेली कहलाने से पहले पांचाल राज्य यानि द्रोपदी का घर हुआ करता था। पुराने समय में बरेली का जायदातर हिस्सा जंगलों से घिरा हुआ था। पांचाल राज्य के सबूत आज भी आपको बरेली से 54 किलोमीटर दूर आंवला के समीप रामनगर में देखने को मिल जायेंगे।
बरेली पर पांचाल के बाद मुग़ल शाशकों का राज्य रहा और फिर अफ़ग़ानिस्तान के रोह नमक जगह के पठानों का अधिकार रहा जिससे यह रोहिलखण्ड नामक क्षेत्र कहलाया। जिसके आसपास बहुत से के जिले आये जैसे की बदायू, पीलीभीत, शाहजहांपुर, अमरोहा, मुरादाबाद, बिजनौर, संभल और रामपुर। ये सारा क्षेत्र रोहिलखण्ड कहलाया और बरेली इसका एक सबसे महत्वपूर्ण जिला बन गया ।
इसके बाद बरेली पर अंग्रेज़ों का अधिकार सन १८०१ में आजादी तक । अंग्रेज़ों के समय में बरेली का महत्व और जायदा बढ़ गया था क्यों की उन्होंने बरेली को कमिश्नरी मुख्यालय बनाया जिससे वे लोग आसपास के क्षेत्रों पर नज़र रखते थे। अंग्रेज़ों की कुछ निशानियाँ आज भी देखने को मिल जाता है।
जैसे की सी बी गंज, कंपनी गार्डन जिसको हम गाँधी उद्यान के नाम से भी जानते है। आज के दौर में बरेली एक समृद्ध नगर हैं और भारत के महत्वपूर्ण शहरों में से एक है। बरेली रेल मार्ग से हर महानगर से जुड़ा हुआ है और सड़कों की व्यवस्था भी बहुत ही बेहतरीन है।
बरेली का पुराना नाम व उपनाम ?
बरेली का पुराना नाम बांस बरेली, सुरमा नगरी, नाथनगरी, ज़री नगरी, पांचाल, कठेर, रुहेलखंड आदि नाम से भी जाना जाता है।
बाँस बरेली ?
जैसे कि मैंने ऊपर इस लेख में आपको बताया कि जिनका नाम बास देव और बरल देव था और ऐसा माना जाता है कि इनके द्वारा ही बरेली की स्थापना की 1537ईस्वी में किया गया। इसलिए बरेली को ‘बाँसबरेली’ के नाम से भी विख्यात है, चूँकि बरेली नैनीताल से मात्र 138 किमी की दुरी पर ही स्थित है।
साथ ही पहाड़ों की तराई के निकटवर्ती प्रदेश में बरेली स्थित होने के कारण यहाँ लकड़ी, बाँस आदि का कारोबार बहुत ज्यादा होता होता है। बरेली के ऊपर एक मुहावरा भी है। ‘उल्टे बाँस बरेली’ जो बरेली में बाँसों की प्रचुरता को प्रमाणित करती है। लकड़ी के विभिन्न प्रकार के सामान और फर्नीचर आदि के लिए भी बरेली अत्यधिक प्रसिद्ध है।
सुरमा नगरी बरेली ?
आपकी आंखों की चमक बढ़ाने वाला सुरमा यहां पर 200 साल से बनता आ रहा है। 200 साल से पहले दरगाह-ए-आला हजरत के पास नीम वाली गली में हाशमी परिवार ने इसकी शुरुआत की थी। अब बरेली में सुरमे का केवल एक कारखाना है, जिसे एम हसीन हाशमी चलाते हैं। उनके द्वारा बतया गया हैं कि पुरे विश्व में सुरमा बरेली से सप्लाई होता है।
इस सुरमे को बनाने के लिए सऊदी अरब से कोहिकूर नाम का पत्थर का निर्यात किया जाता है, जिसे छह महीने गुलाब जल में फिर छह महीने सौंफ के पानी में डुबो के रखा जाता है। और उसके उपरांत सुखने पर घिसाई की जाती है, फिर इसमें सोना, चांदी और बादाम का अर्क मिलाया जाता है। जिससे बरेली का प्रसिद्ध सुरमा तैयार होता है और हम सभी के घर घर पहुँचता है।
नाथनगरी बरेली ?
बरेली को नाथ नगरी इसलिए कहा जाता है क्यूकि कहते है यहाँ भगवान्में शंकर खुद विराजमान है। और यहाँ के मुख्य प्राचीन शिव मंदिरों धोपेश्वरनाथ, मढ़ीनाथ, तपेश्वर नाथ, पशुपतिनाथ,अलखनाथ, त्रिवटी नाथ, वनखण्डी नाथ मंदिर के कारण इसे नाथनगरी के नाम से भी जाना जाता है।
ज़री नगरी बरेली ?
बरेली को जरी नगरी इसलिए भी कहा जाता है क्युकी यहाँ ज़री का कारोबाऱ भी बहुत बड़े स्तर पर होता है। और यहाँ जरी का कार्य हर घर मे होता है।
बरेली की स्थिति ?
बरेली उत्तरी भारत में मध्य उत्तर प्रदेश राज्य में रामगंगा नदी तट पर स्थित है। बरेली के पूर्व में पिलीभीत एवं शाहजहांपुर, पश्चिम में बदायु, संभल और रामपुर, उत्तर में उत्तराखंड राज्य और इसके दक्षिण में शाहजहांपुर एवं बदायु स्थित है।
बरेली का संछिप्त परिचय ?
बरेली जनपद का कुल क्षेत्रफल 4120 वर्ग किमी में फैला हुआ है। जिसकी कुल जनसँख्या 4448359 है जिसमे कुल 2070 गांव है और बरेली में पुरुषो की संख्या 2,357,665 वही महिलओ की संख्या 2,090,694 है। यहाँ की साक्षरता कि दर 58.49 है। बरेली में कुल 06 तहसीलें, 20 नगर निकाय, 2070 गाँव आते हैं। बरेली जिले के 6 तहसीलें बरेली सदर, बहेड़ी, मीरगंज, नवाबगंज, फरीदपुर, आंवला हैं।
बरेली जिले में 29 थाने हैं कोतवाली, बारादरी, अलीगंज, आँवला, बहेड़ी, भमोरा, बिथरी, भोजीपुरा, भुता, कैंट, कलक्टर बक गंज, देओरनिया, फरीदपुर, फतेहगंज पूर्वी, फतेहगंज पश्चिमी, हाफिजगंज, इज्जतनगर, कुलड़िया, महिला थाना बरेली, मीरगंज, नवाबगंज, प्रेमनगर, किला, शाही, शीशगढ़, शेरगढ़, सिरौली, सुभाषनगर, विशारतगंज है।
द्रौपदी की जन्मभूमि ?
बरेली को महाभारत महाकाव्य के अनुसार बरेली क्षेत्र द्रौपदी की जन्मभूमि भी बताई गयी है।
महात्मा बुद्ध ?
जनश्रुति के अनुसार महात्मा बुद्ध ने भी प्राचीन काल में अहिछत्र क्षेत्र का भ्रमण किया था।
बरेली का प्राचीन का नाम पांचाल ?
इतिहासकारो के अनुसार पांचाल नामकरण को लेकर कई तरह की लोककथाएं प्रचलित हैं। प्राचीन काल में बरेली को पांचाल राज्य के नाम से जाना जाता था। प्राचीन काल में कुमायूं के मैदानी क्षेत्र से लेकर चंबल नदी और गोमती नदी तक फैला यह क्षेत्र छठी शताब्दी तक पांचाल राज्य के अंतर्गत रहा। कहा जाता है कि भरतवंशी राजा भ्रम्यश्व के पांच पुत्रों में बंटने के कारण और कृवि, तुर्वश, केशिन, सृंजय और सोमक पांच ने इस भूभाग पर राज किया और इसी कारण से प्राचीन काल में बरेली का नाम पांचाल पड़ा।
सम्राट भरत के समय पांचाल (बरेली) ?
प्राचीन समय में जब आर्य शक्ति का केंद्र ब्रह्मावर्त हुआ करता था, राजा भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा गया और भरत का राज्य सरस्वती नदी से लेकर अयोध्या तक फैला हुआ था, तब पांचाल (बरेली) उनके ही राज्य का काफी संपन्न भाग था।
राजा हस्ति के समय में पांचाल (बरेली) ?
कहा जाता है कि सम्राट भरत के ही काल में राजा हस्ति हुए जिनके द्वारा राजधानी हस्तिनापुर बनाई। राजा हस्ति के पुत्र अजमीढ़ को पांचाल का राजा कहा गया है। राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब हस्तिनापुर के राजा थे। तो पांचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था
राजा सुदास के समय में पांचाल (बरेली) ?
राजा सुदास का संवरण कुरु के पिता का नाम से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वानों ने ऋग्वेद में वर्णित दाशराज्ञ का युद्ध कहा। राजा सुदास के समय पांचाल राज्य का बहुत जायदा विस्तार किया गया।
संवरण के पुत्र कुरु का पांचाल पर शासन ?
राजा सुदास के बाद संवरण के पुत्र कुरु ने अपनी शक्ति बढ़ाकर पांचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया। तब यह संयुक्त रूप से कुरु-पांचाल कहलाया। जिसे बाद में बाद में स्वतंत्र माना गया
पंचाल राज्य में मौर्य काल के साक्ष्य ?
वही मौर्यकाल में पंचाल भी चन्द्रगुप्त मौर्य के अधीन था। तब कौटिल्य ने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र के मोतियों के बारे में उल्लेख किया है, जो काफी प्रसिद्ध थे।
पांचाल राज्य में कुषाण काल के साक्ष्य ?
पुरातात्विक सर्वेक्षणों में पाया गया है कि बरेली में शुंग व कुषाण काल में काफी कुछ साक्ष्य मिले है। इसके अलावा कुषाणकालीन ताम्र मुद्राएं और मृण्मूर्तियों से यह भी मालूम पड़ता है कि कुषाण काल में यह क्षेत्र भी कुषाण राजाओं के अधीन था और तब यहां सिर्फ बस्तियों व संस्कृतियों का अस्तित्व था।
पंचाल राज्य में गुप्तकाल के साक्ष्य ?
राजा समुद्रगुप्त द्वारा अधिकार किए जाने के बाद से लगभग 200 साल तक पंचाल राज्य पर गुप्त के राजाओं ने राज किया। इस काल में पांचाल व अहिच्छत्र का काफी जोरोशोरों से सांस्कृतिक विकास हुआ।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ?
हर्ष के समय भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अहिच्छत्र नगर (वर्तमान बरेली जनपद) का विवरण अपनी पुस्तक में लिखा है। ह्वेनसांग के द्वारा लिखा गया है कि ‘अहिच्छत्र हर्ष के काल में एक वैभवशाली नगर हुआ करता था और यहां बौद्ध एवं ब्राह्मïण दोनों का ही प्रभाव बहुत तेज़ था। पुरातात्विक साक्ष्यों से मालूम पड़ता है कि अहिच्छत्र का विध्वंस लगभग 11वीं सदी में महमूद गजनवी के लगातार आक्रमण से शुरू हो गया था।
मुस्लिम शासकों का बरेली पर शासन ?
कहते है बरेली में मुस्लिम शासकों का भी बोल बाला रहा। उस समाये महमूद गजनबी के आक्रमणों के बाद कई राजपूत वंशों द्वारा लगातार दो सौ साल तक संघर्ष किया गया। तत्पश्चात कुछ समय बाद कुतुबद्दीन ऐबक ने वर्तमान मुरादाबाद जिले के सम्भल और बदायूं जिले को आक्रमण कर अपने उनपर कब्ज़ा कर लिया। इस तरह से मुस्लिम शासकों ने 13वीं सदी तक पूरे रुहेलखंड क्षेत्र से कठेहरों को पराजित करके अपना राज्य स्थापित पुण रूप से कर लिया। जिसके बाद इनके द्वारा काफी लम्बा राज किया गया। ।
स्वतंत्रता संग्राम में बरेली का योगदान ?
देश की रक्षा करने में भी बरेली पीछे नहीं हटा और यहा से स्वतंत्रता संग्राम में भी बरेली का अतुलनीय योगदान रहा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफ संघर्ष में बरेली का विशेष योगदान रहा है।
टूरिस्ट प्लेस बरेली ?
अहिच्छत्र फोर्ट बरेली ?
अहिच्छत्र फोर्ट बरेली के आंवला तहसील रामनगर में स्थित है। अहिच्छत्र फोर्ट का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यहां आपको दक्षिण पांचाल का उल्लेख देखने को मिलता है। पांचाल की राजधानी द्रुपद नगर हुआ करता था। और राजा द्रुपद की पुत्री द्रोपदी का स्वयंवर यहां रचाया गया था। ईसा पूर्व 100 ई.वी के आसपास यहां मित्र राजाओं का राज्य रहा। फिर 1662-63 में तीन टीलों की खोज हुई थी, यहां स्तूप भी पाया गया। आज यह टीला खंडहर के रूप में दिखाई पड़ता है, जिसके बीचों-बीच पहाड़ीनुमा टीले पर भीम शिला खंड भी है, जिसे भीम गदा के नाम से भी जाना जाता है। यह टीला अब पुरातत्व विभाग के अधिकार क्षेत्र में के अंतर्गत है।
क्राइस्ट मेथोडिस्ट चर्च बरेली ?
क्राइस्ट मेथोडिस्ट चर्च एक बहुत पुराना चर्च है जोकि लगभग 145 साल पुराना है। डॉक्टर विलियम बटलर जो कि एक ब्रिटिश मिशिनरी थे, उन्होंने इस चर्च बनवाया था। क्राइस्ट मेथोडिस्ट चर्च बाहर के डोनेशन को नहीं लेता है, बल्कि कम्यूनिटी के लोग ही डोनेशन इकट्ठा करते है। यहां पर जगह-जगह पर कोड्स लिखे हुए हैं, तो कुछ न कुछ सीख देते हैं। इस चर्च को भी देखने लोग दूर दूर से आते हैं।
मढ़ीनाथ मंदिर ?
पश्चिम दिशा में स्थित यह प्राचीन मंदिर पांचाल नगरी में है। ऐसा माना जाता रहा है कि यह मंदिर 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है, कहते है मढ़ीनाथ मंदिर के शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने अपने वनवास के दौरान की थी। मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां मणिधारी नाग शिवलिंग की रक्षा करता है। मंदिर परिसर में ही रहने वाले एक बाबा ने बताया कि ऐसे कई मौके आए जब मणिधारी नाग ने अपनी मणि बाहर निकाली, इससे तेज रोशनी भी हुई।
बताया जाता है कि वर्तमान में इस नाग ने मंदिर परिसर के एक जीर्ण हो चुके कमरे में डेरा डाल रखा है। पिछले दिनों जब इस कमरे का कूड़ा निकालने के लिए लोग भीतर गए तो उन्हें नाग का सामना करना पड़ा। इस पर उक्त कमरे का जीर्णोद्धार रोक दिया गया। और इन्ही कारणों से मंदिर का नाम मढ़ीनाथ मंदिर पड़ा गया । जिस इलाके में ये मंदिर स्थित है। उस इलाके को मढ़ीनाथ मोहल्ले के नाम से जाना जाता है।

धोपेश्वर नाथ मंदिर ?
बरेली के सदर कैंट के दक्षिण मध्य अग्निकोण में ये मंदिर स्थित है। कहते है कि धूम्र ऋषि ने यहां कठोर तपस्या की थी और उनके द्वारा की गयी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने दर्शन दिए और धूम्र ऋषि ने भगवान से जनकल्याण के लिए यहीं विराजने की प्रार्थना की। जिसके बाद यहां स्थापित धूम्रेश्वर नाथ के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में ये मंदिर धोपेश्वर नाथ नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही एक अन्य कथा ये भी है कि इस स्थल पर महाभारत युग में द्रौपदी और धृष्टद्युम्न का जन्म स्थल है । द्रौपदी और धृष्टद्युम्न दोनों को भगवान शिव की कृपा से पैदा हुआ माना जाता था। जिस कारण यह मंदिर भगवान धोपेश्वरनाथ को समर्पित है।

त्रिवटी नाथ मंदिर ?
त्रिबटी नाथ मंदिर उत्तर कुबेर दिशा प्रेमनगर में ये भव्य मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने खुद प्रकट होकर तीन वटों के नीचे सो रहे एक चरवाहे को उसके सपने में दर्शन दिए और कहा कि यहां पर मैं स्थित हूं। नींद से जागने के बाद चारवाह ने भगवान का आदेश मानकर त्रिवट के नीचे खुदाई की तो उसे शिवलिंग के दर्शन हुए। इस प्रकार हिंदू कैलेंडर के अनुसार विक्रम संवत १४७४ प्राकृतिक शिव के रूप में बाबा त्रिवती नाथ जी भगवान का उदीयमान (प्रकात्य) वर्ष है। यह स्थान धीरे-धीरे पूजा का केंद्र बन गया। जिसके कारण इस मंदिर का नाम त्रिवटी नाथ मंदिर पड़ा।

तपेश्वर नाथ ?
यह शहर का सबसे पुराना मंदिर है,दक्षिण भूतनाथ सुभाष नगर वीर भट्टी मैदान के पास के इलाके में स्थित ये मंदिर कई ऋषियों और संतों की तपोस्थली रहा है। आधुनिक और पुरानी दोनों गतिविधियाँ के चलते इस मंदिर का नाम तपेश्वर नाथ मंदिर पड़ा।

अलखनाथ मंदिर ?
उत्तर पश्चिम दिशा में ये मंदिर किला, बरेली के पास नैनीताल रोड पर स्थित है। अलखनाथ मंदिर का इतिहास 930 साल से भी ज्यादा पुराना रह चूका है। एक स्थानीय कहावत के अनुसार, किला क्षेत्र प्राचीन काल में घने जंगलों से घिरा हुआ था। इलाके में स्थित है। इस अलख नाथ मंदिर नागा संन्यासियों के आनंद अखाड़ा आदेश का मुख्यालय है। शिव भक्तों के इस क्रम के सदस्यों को नागा बाबा के नाम से भी जाना जाता है।
बाबा कालू गिरि मंदिर के वर्तमान महंत हैं । मुगलकाल में जब सनातन संस्कृति को नष्ट किया जा रहा था। तो धर्म की रक्षा के लिए आनंद अखाड़े के बाबा अलाखिया को यहां भेजा गया। शिव के अनन्य भक्त बाबा अलाखिया ने यहां भगवान शिव की कठोर तपस्या कर शिवलिंग की स्थापना की। जिसके बाद मुस्लिम शासक बाबा के तपोवन में प्रवेश नहीं कर पाए। अलाखिया बाबा के नाम पर ही मंदिर का नाम अलखनाथ मंदिर पड़ा। यहां आज भी मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है का बोर्ड लगा हुआ है।

वनखंडी नाथ मंदिर ?
पूर्व दिशा में भगवान शिव को समर्पित बंखंडीनाथ मंदिर बरेली के जोगी नवादा पड़ोस में स्थित है। कहा जाता है कि ये अति प्राचीन मंदिर स्थित है। बनखंडी नाथ मंदिर का संबंध द्वापर युग से भी है। इस मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ था। मंदिर में बड़ी संख्या में साधु-संत एकत्रित होते थे। और यहाँ कठोर तपस्या करते थे। उनमें से कई ने मंदिर में समाधि भी ले ली। समाधि आज भी मंदिर परिसर में देखि जा सकती हैं। माना जाता है कि राजा द्रुपद की पुत्री द्रोपदी ने अपने राजगुरु द्वारा शिवलिंग की विधिवत पूजा अर्चना कर प्राण प्रतिष्ठा कराई थी। और कहा यह भी जाता है। उस समय यहां से गंगा माँ होकर गुजरती थी, लेकिन आज मन्दिर परिसर में एक सूखा तालाब ही शेष है।
वन से घिरे इस मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब ने भी शिव मंदिर को तोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन उनकी सभी कोशिश बेकार साबित हुई। कहा जाता है कि मुस्लिम शासकों द्वारा वन में स्थित इस मंदिर को खंडित करने की कोशिश के कारण ही मंदिर का नाम बनखंडी नाथ पड़ा। मंदिर का संचालन दशनाम जूना अखाड़ा करता है। सावन माह में इस मंदिर का नजारा ही कुछ अलग ही होता है। सावन माह में इस मंदिर का नजारा ही कुछ अलग ही होता है।

पशुपति नाथ ?
पशुपतिनाथ मंदिर, जिसे जगमोहनेश्वरनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, यह मंदिर सात नाथ मंदिरों में सबसे नया है। इस मंदिर में भगवान पशुपतिनाथ भगवान शिव के एक अवतार को समर्पित है । यह मंदिर पीलीभीत बाईपास रोड पर स्थित है। इसकी पशुपतिनाथ मंदिर की स्थपना 2003 में शहर के एक निर्माता द्वारा बनाया गया था। मंदिर के निर्माण में लगभग एक वर्ष से अधिक का समय लगा। यहाँ के शिवलिंग स्थापित मुख्य मंदिर के अंदर पंचमुखी (पांच सामना), के समान के रूप में है।
साथ ही मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर, एक भैरव मंदिर, कैलाश पर्वत की प्रतिकृति और भगवान शिव के 108 नामों को समर्पित 108 शिवलिंग शामिल हैं। इस मंदिर परिसर में रुद्राक्ष और चंदन के पेड़ भी लगाए गए हैं। ये मुख्य मंदिर के चारो तरह एक तालाब के बीच में स्थित है, जो इसे चारों तरफ से घेरे हुए है। तालाब में मछलियाँ और बत्तख बहुतायत में पाए जाते हैं। मंदिर परिसर में रामेश्वरम के रामसेतु से लाया गया एक पत्थर भी है , जो पानी में तैरता है।

दरगाह आला हजरत बरेली ?
दरगाह-ए-अला हज़रत अहमद रजा खान की दरगाह है, जो 19वीं शताब्दी के हनीफी विद्वान थे, जो भारत में वहाबी विचारधारा के कट्टर विरोध के लिए जाने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर यहां आप कोई मन्नत लेकर आते हैं, तो वो आपकी हर मन्नत को जरूर पूरा करते है।

खानकाह-ए-नियाजिया बरेली ?
बरेली की खानकाहे नियाजिया की भी अपनी एक अलग पहचान है। वैसे तो हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ का उर्स पूरी दुनिया में मनाया जाता है। लेकिन बरेली की खानकाह नियाजिया की अहमियत इसलिए भी है। क्योंकि यहां ख्वाजा गरीब नवाज़ के रूहानी जानशीन हज़रत शाह नियाज़ बे नियाज़ की दरगाह भी साथ में है। खानकाहे नियजिया की मान्यता है कि अगर 17वीं रवी को यहां चिराग रोशन करेगा उसकी हर जायज मुराद पूरी होती है। और ये सिलसिला लगभग 300 वर्षों से चल रहा है जिसमें देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी जायरीन शिरकत करते आते है।
फन सिटी बरेली ?
वैसे तो में फनसिटी नाम के कई मनोरंजक पार्क हैं, लेकिन बरेली का फन सिटी पार्क उत्तर भारत में सबसे बड़ा पार्क माना जाता है। यहाँ सभी आयु वर्ग के लोगों के लिये पार्क में मनोरंजन की भरपूर सुविधाएं उपलब्ध पूर्ण रूप से उपलब्ध है। इसलिए यह न सिर्फ बरेली वासियों के लिए बल्कि पर्यटकों के लिए भी आराम फरमाने और कुछ फुर्सत के पल बिताने के लिए लोकप्रिय जगह है।

गांधी उद्यान बरेली ?
बरेली शहर का गांधी उद्यान आज भी किसी पहचान का मोहताज नहीं, शहर के अधिकतर लोगों का यहां आना होता है। यहां लहराता 135 फीट ऊंचा तिरंगा इसकी शान को और बढ़ाए रखता है। ये सिविल लाइन्स बरेली में स्थित है।

बरेली के प्रसिद्ध स्थल ?
बरेली में गाँधी उद्यान बरेली,फनसिटी बरेली,फीनिक्स मॉल बरेली,बरेली कॉलेज,कारगिल चौक बरेली,आला हजरत दरगाह बरेली,रानी लक्ष्मी बाई चौक बरेली,कलेक्ट्रेट बरेली,बूँद एम्यूजमेंट पार्क बरेली, रैडिसन 5 स्टार होटल,अक्षर विहार प्रसिद्ध है।
बरेली के प्रमुख शिव मंदिर ?
धोपेश्वरनाथ नाथ बरेली,मढ़ीनाथ मंदिर बरेली,अलखनाथ मंदिर बरेली,त्रिवटीनाथ मंदिर बरेली,वनखंडीनाथ मंदिर बरेली, तपेश्वर नाथ और पशुपति नाथ मंदिर मुख्य है।
दोस्तों आशा करता हु कि आपको ये लेख पसंद आएगा। मित्रो अगर इस लेख में मुझसे कोई त्रुटि हुई हो तो उसके लिए छमा कीजियेगा यह लेख मैंने अपने नॉलेज के अनुसार लिखा है। अगर आपको ये लेख पसंद आये तो कमेंट में अपनी विचार जरूर दीजिएगा।
FAQ:बरेली का पिनकोड क्या है (what is the pin code of bareilly up)?
उत्तर:243001