नमस्कार मित्रो कैसे है आप सब दोस्तों आज के में हम बात करने वाले है बरेली के इतिहास के बारे में, दोस्तों बरेली प्राचीन काल में कौशल साम्राज्य का एक अभिन्न अंग था। भारतवर्ष अपनी विविधताओं के साथ अपना गौरवशाली इतिहास को अपने आप में समेटे हुये है, जहा ऐतिहासिक दृस्टि से देखा जाये तो जनपद बरेली का अतीत बहुत ज्यादा गौरवशाली और महिमामही रहा है।
पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा औध्योगिक दृष्टि से बरेली का अपना ही एक विशिष्ट स्थान है। जहा एक तरफ हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए बरेली का विशेष इतिहास रहा है। बरेली के उत्पत्ति या यू कह ले कि बरेली की स्थापना का इतिहास निम्न प्रकार से है।
उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित बरेली रामगंगा नदी तट पर स्थित है। बरेली नगर में रुहेलों का अतीत समाहित है। बरेली रोहिलखंड के ऐतिसाहिक क्षेत्र की राजाधानी था। जनपद बरेली का शहर महानगरीय है। बरेली उत्तर प्रदेश का 7वाँ तथा देश का 50वाँ बड़ा महानगरो में सम्मिलित है। बरेली जो की नाथ नगरी, जरी नगरी, और मेडिकल हब के रूप में भी जाना जाता है। 1537 में स्थापित बरेली शहर का निर्माण मुग़ल प्रशासक ‘मकरंद राय’ के द्वारा करवाया था।
उस समय यह क्षेत्र अठारहवीं शताब्दी के मध्य में रोहिलों के नियंत्रण में आ गया और इस तरह रोहिलखंड के रूप में जाना जाने लगा। सन 1774 में अवध के शासक ने अंग्रेज़ों की मदद से इस क्षेत्र को जीत लिया और 1801 में बरेली को ब्रिटिश क्षेत्र में शामिल कर लिया गया। जब मुग़ल सम्राटों का राज्य यहाँ चल रहा रहा तो उस समय में बरेली को फ़ौजी नगर के रूप में भी जाना जाता था। जो की अब वर्तमान में बरेली में एक फ़ौज की छावनी है। बरेली 1857 में ब्रिटिश शासन के समय में उनके ख़िलाफ़ हुए भारतीय विद्रोह का एक केंद्र का हिस्सा रहा था।
कहा जाता है कि बास देव और बरल देव ने यहाँ एक क़िला भी बनवाया था जो कि बाद में समाप्त हो गया। लेकिन जानकारी के लिए आपको बता दू कि यहाँ क़िला के नाम से एक मोहल्ला आज भी यहाँ स्थित है। जहाँ पुराने क़िले के कुछ अवशेष अभी भी देखने को मिल जाते हैं ।
बरेली का पुराना नाम व उपनाम ?
बरेली का पुराना नाम बांस बरेली, सुरमा नगरी, नाथनगरी, ज़री नगरी, पांचाल, कठेर, रुहेलखंड आदि नाम से भी जाना जाता है।
बाँस बरेली ?
जैसे कि मैंने ऊपर इस लेख में आपको बताया कि जिनका नाम बास देव और बरल देव था और ऐसा माना जाता है कि इनके द्वारा ही बरेली की स्थापना की 1537ईस्वी में किया गया। इसलिए बरेली को ‘बाँसबरेली’ के नाम से भी विख्यात है, चूँकि बरेली नैनीताल से मात्र 138 किमी की दुरी पर ही स्थित है।
साथ ही पहाड़ों की तराई के निकटवर्ती प्रदेश में बरेली स्थित होने के कारण यहाँ लकड़ी, बाँस आदि का कारोबार बहुत ज्यादा होता होता है। बरेली के ऊपर एक मुहावरा भी है। ‘उल्टे बाँस बरेली’ जो बरेली में बाँसों की प्रचुरता को प्रमाणित करती है। लकड़ी के विभिन्न प्रकार के सामान और फर्नीचर आदि के लिए भी बरेली अत्यधिक प्रसिद्ध है।
सुरमा नगरी बरेली ?
आपकी आंखों की चमक बढ़ाने वाला सुरमा यहां पर 200 साल से बनता आ रहा है। 200 साल से पहले दरगाह-ए-आला हजरत के पास नीम वाली गली में हाशमी परिवार ने इसकी शुरुआत की थी। अब बरेली में सुरमे का केवल एक कारखाना है, जिसे एम हसीन हाशमी चलाते हैं। उनके द्वारा बतया गया हैं कि पुरे विश्व में सुरमा बरेली से सप्लाई होता है।
इस सुरमे को बनाने के लिए सऊदी अरब से कोहिकूर नाम का पत्थर का निर्यात किया जाता है, जिसे छह महीने गुलाब जल में फिर छह महीने सौंफ के पानी में डुबो के रखा जाता है। और उसके उपरांत सुखने पर घिसाई की जाती है, फिर इसमें सोना, चांदी और बादाम का अर्क मिलाया जाता है। जिससे बरेली का प्रसिद्ध सुरमा तैयार होता है और हम सभी के घर घर पहुँचता है।
नाथनगरी बरेली ?
बरेली को नाथ नगरी इसलिए कहा जाता है क्यूकि कहते है यहाँ भगवान्में शंकर खुद विराजमान है। और यहाँ के मुख्य प्राचीन शिव मंदिरों धोपेश्वरनाथ, मढ़ीनाथ, तपेश्वर नाथ, पशुपतिनाथ,अलखनाथ, त्रिवटी नाथ, वनखण्डी नाथ मंदिर के कारण इसे नाथनगरी के नाम से भी जाना जाता है।
ज़री नगरी बरेली ?
बरेली को जरी नगरी इसलिए भी कहा जाता है क्युकी यहाँ ज़री का कारोबाऱ भी बहुत बड़े स्तर पर होता है। और यहाँ जरी का कार्य हर घर मे होता है।