एक ऐसा मुसलमान जिसने मंदिरों के लिए खोल दिया खजाने का रास्ता

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एक ऐसा मुसलमान जिसने मंदिरों के लिए खोल दिया खजाने का रास्ता
एक ऐसा मुसलमान जिसने मंदिरों के लिए खोल दिया खजाने का रास्ता

एक ऐसा मुसलमान जिसने मंदिरों के लिए खोल दिया खजाने का रास्ता: दोस्तों चुन्ना मियां शायद आपने इनका नाम ही सुना ही होगा। अगर नहीं सुना तो आज के इस लेख में हम आपको बताएँगे कि चुन्ना कौन थे जिन्होंने सिर्फ मन्दिर निर्माण कार्य के लिए न सिर्फ अपनी जमीन दान में दे दी, बल्कि मन्दिर निर्माण कार्य के लिए उनके द्वारा आर्थिक रूप से मंदिर को बनाने में बहुत मदद भी किया साथ ही उन्होंने मंदिर बनवाने में अपना श्रमदान भी किया।

भारत के हर कोने से प्यार और सांप्रदायिक सौहार्द की खुशबू महकती है। इन्ही में से एक है। उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के कटरा मनाराय में बना हुआ लक्ष्मी नारायण का प्रसिद्ध मंदिर है। जहाँ अमन और सौहार्द के फूल चारो तरफ खिलखिलाते हैं। इस मंदिर को बरेली के एक बड़े प्रसिद्ध सेठ फजलूरहमान उर्फ चुन्ना मियां ने के द्वारा इसका निर्माण कराया गया था।

एक ऐसा मुसलमान जिसने मंदिरों के लिए खोल दिया खजाने का रास्ता
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ये लक्ष्मी नारायण का मंदिर को लोग चुन्ना मियां के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहते है कि इस मंदिर के निर्माण कार्य में इन्होने मदिर बनवाने के लिए न सिर्फ अपनी जमीन दान में दे दी, बल्कि मन्दिर निर्माण कार्य के लिए उनके द्वारा आर्थिक रूप से मंदिर को बनाने में बहुत मदद भी की, साथ ही उन्होंने मंदिर बनवाने में अपना श्रमदान भी किया।

जहा गगां जमुना तहजीब के प्रतीक और इंसानियत अद्भुत इस मिशाल को अपना धर्म मानने वाले चुन्ना मियां का यह मंदिर धर्म और मजहब के नाम पर समाज को बांटने से रोकने वालों के लिए यह एक मिशाल माना जाता है। जहा हिन्दू और मुसलममान भाई के एकता का प्रतीक है।

कुछ इस तरह हुआ मंदिर का निर्माण?

बात तब की है जब हमारा देश आजाद ही हुआ था और उसी समय वर्ष 1957 में पाकिस्तान से आकर कुछ पंजाबी समाज के लोग शहर में आकर रहने लगे। परन्तु समस्या ये थीं कि उनके पास पूजा पाठ करने के लिए कोई मुख्य जगह नहीं थी। लेकिन फिर जब बाद में इन् लोंगों ने अपने रहने के लिए छत की व्यस्था कर ली तो वहीं वही पास में स्थित चुन्ना मियां की खाली जमीन पड़ी थी।

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जिसके बाद पंजाबी समाज के लोगों द्वारा कब्जा कर लिया, यहाँ का माहौल को समझते हुए दोनों पक्षों ने कोर्ट का सहारा लेना उचित समझा और एक दिन ये मामला कोर्ट में पहुंच गया। लेकिन कुछ समय में ही चुन्ना मियां ने न सिर्फ मन्दिर के लिए जमीन दान कर दी बल्कि मुकदमे में हुए खर्च भी वापस कर दिया और साथ ही मन्दिर निर्माण के लिए चंदा भी दिया, इतना ही नहीं विरोध के बाबजूद भी उनके द्वारा मन्दिर के निर्माण कार्य में अपना श्रमदान दीया।

तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के द्वारा हुआ मंदिर का उद्घाटन?

जानकारी के मुताबिक दिनांक 16 मई 1960 में जब बनकर तैयार हुआ यह मंदिर तब इसके उद्घाटन के लिए चुन्ना मियां ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को आमन्त्र भेजा गया, जिसको स्वीकार कर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बरेली आये और मन्दिर का उद्घाटन कराया।

आज के दौर में सेठ फजरुल रहमान उर्फ़ (चुन्ना मियां) तो अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन इनके परिवार के प्रत्येक सदस्य यहाँ आज भी आते है और तो और मंदिर के कार्यों व अन्य मदिर से कामो में अपने प्रतिभाग करते हैं। यहाँ हर धर्म और जाति के लोग इस मंदिर में आते हैं।

मंदिर की मूर्तियां लेने खुद गए थे जयपुर चुन्ना मियां?

चुन्ना मियां के पोते शमशुल-उर-रहमान और नजमुल-उर-रहमान- ‘दादा ही मंदिर के लिए श्री लक्ष्मी नारायण की मूर्तियां लेने खुद जयपुर गए थे। इस मंदिर के लिए उनसे बेहतर और खूबसूरत असली संगमरमर की मूर्तियां कोई दूसरा पहचान कर नहीं ला पाएगा.’शायद चुन्ना मियां की हदों से पार मंदिर बनवाने की ललक का ही नतीजा है कि आज बरेली शहर में इस मंदिर को ‘लक्ष्मी नारायण मंदिर’ के नाम से बहुत कम लोग जानते हैं. मंदिर को ‘चुन्ना मियां मंदिर’ के नाम से शहर में रिक्शे वाले से लेकर बच्चा-बच्चा जानता है।

एक ऐसा मुसलमान जिसने मंदिरों के लिए खोल दिया खजाने का रास्ता
एक ऐसा मुसलमान जिसने मंदिरों के लिए खोल दिया खजाने का रास्ता

इकलौता मंदिर जिसमें मौजूद है अशोक की लाट?

शायद ही कहीं देखने को मिले कि किसी मंदिर के बाहर अशोक की लाट स्थापित की गई हो। लेकिन चुन्ना मियां मंदिर परिसर में (प्रवेश द्वार पर) अशोक की चमचमाती हुई लाट आज भी स्थापित है। इसे चुन्ना मियां के पोते शमशुल-उर-रहमान – ‘चूंकि मंदिर का उद्घाटन उस जमाने में 16 मई 1960 को भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से कराया गया था। शायद इसीलिए महामहिम की शान में मंदिर में अशोक की लाट लगवाई गई हो.’

मंदिर के लिए दिया सबसे ज्यादा दान?

कहा जाता है कि इस मंदिर को बनवाने में और भी अन्य लोगो ने योगदान देने में दानदाताओं की भूमिका रही है। लेकिन सबसे प्रबल फजरुल रहमान उर्फ़ चुन्ना मियां जैसा योगदान और किसी के द्वारा नहीं दिया गया। जानकारी के अनुसार फजरुल रहमान उर्फ़ चुन्ना मियां ने तमाम विरोधों और चुनौतियों को झेलने के बाद भी मंदिर बनाने के लिए दान दिया।

साथ ही श्रमदान करके भी हिन्दू-मुस्लिम एकता की एक नयी मिशाल लोगो के सामने पेश की। लोगो का कहना है कि उस समय में चुन्ना मियां शहर के सबसे रहीस सेठ हुआ करते थे। और उनके जैसा इस शहर में कोई दूसरा नहीं था वह लोगो के मदद को हमेशा तात्पर्य रहते थे।

चुन्ना मियां ने अन्य मंदिरों में भी दिया दान?

कहते है कि चुन्ना मियां ने न सिर्फ इस लक्ष्मी नारायण के मंदिर के लिए दान दिया, बल्कि शहर के अन्य मंदिरों में भी दान दिया। उन्होंने प्रसिद्ध मदिरो में सें हरि मन्दिर में भी राधा कृष्ण की मूर्ति लगवाने के लिए दान दिया था वही प्रमुख शिव मंदिर धोपेश्वरनाथ में चुन्ना मियां द्वारा श्रद्धालुओं के लिए ट्यूबवेल लगवाया था।

 

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