कुछ यू बदल रही है अपने बरेली की तस्वीर Some u Are Changing the Picture of Your Bareilly

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कुछ यू बदल रही है अपने बरेली की तस्वीर Some u Are Changing the Picture of Your Bareilly
कुछ यू बदल रही है अपने बरेली की तस्वीर Some u Are Changing the Picture of Your Bareilly

कुछ यू बदल रही है अपने बरेली की तस्वीर Some u Are Changing the Picture of Your Bareilly:नमस्कार दोस्तों कैसे है आप सब आशा करता हु कि आप सब बहुत अच्छे होंगे। मित्रो आज के इस लेख में हम आपसे बात करने वाले है कि कैसे कुछ यू बदल रही है अपने बरेली की तस्वीर Some u Are Changing the Picture of Your Bareilly तो चलिये ज्यादा नहीं करते है और आपको बताते इसके बारे में।

दशक दर दशक अपने नाथ नगरी की तस्वीर बदलती जा रही है। हम सभी को समय का मोल बताता घंटा घर समय के साथ अब स्मार्ट हो चला है साथ ही हमारा अपना बरेली अब स्मार्ट सिटी बनने की राह पर है। अपनी धरोहर को शहजे हुए हम तंग गलियों व रास्तो से निकलकर चौड़ी-चौड़ी सड़को पर फर्राटा भरते हुए आगे निकले चले जा रहे है। जिसके बारे में आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से अपना बरेली में हुए बदलवो से आपको तस्वीर दिखाने की कोशिश करेंगे।

घंटाघर बरेली(Ghantaghar Bareilly)?

बात उस समय की है जब ब्रिटिश काल के समय वर्ष 1868 कुतुबखाना तिराहा एक टाउन हॉल हुआ करता था। जोकि अंग्रेजो का कार्यालय हुआ करता था। समय के साथ टाउन हॉल खत्म हुआ और साल 1975 में इसी जगह अपर घंटाघर का निर्माण किया गया। उस टाइम लोगो को घडी देखने की आवश्यकता ही नहीं होती थी क्युकी इसमें लगा अलार्म (साइरन) हर घंटे बजता था।

कुछ यू बदल रही है अपने बरेली की तस्वीर Some u Are Changing the Picture of Your Bareilly
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परन्तु यह मुख्य बाज़ार होने व इसकी देख रेख न होने के कारन यह दुर्दशा का शिकार हो गया। जिसके कारण घंटाघर का वक़्त थमता चला गया और इसमें लगा साइरन पहले ख़राब हुआ उसके बाद इसकी घडी ख़राब हो गयी। जिसके बाद इसने अपनी मरम्मत के इंतज़ार में बंद(ठप) हो गयी।

अब उसी घंटाघर के ठहरे हुए वक़्त को शुरू करने के लिए बरेली स्मार्टसिटी प्रोजेक्ट के तहत करीब 90 लाख के बजट साथ एक बार फिर से इसे गति मिल चुकी है। जिसके बाद अपना बरेली के घंटा घर को फिर से अपनी पुरानी खोई पहचान मिल चुकी है। बताते चले कि चेन्नई की कंपनी इंडियन क्लॉक्स के द्वारा घंटा घर में लगयी गयी घडी को माइल्ड स्टील फुटग्रेड इम्पोर्टेड एक्रेलिक डायल विथ रोमन नंबर का इसमें इस्तेमाल किया गया है।

बताते चले हर घंटे पर इसका भी अलार्म बजता है जोकि कम से कम 500 मीटर तक सुनाई देता है। इसमें खास बात ये है कि इसका 24 घंटे का बैटरी बैकअप जोकि आटोमेटिक है। जो बंद होने पर फिर से पुनः शुरू होकर फिर से अपना सही वक़्त बताने लगती है।

कमिशनरी (Commissary)?

कहते है चौकी चौराहा के पास स्थित commissary सरदार नवाब खान बहादुर खान के मददगार 257 क्रांतिकारियों को सन 1860 में एक साथ फांसी दे दी गयी थी। commissary में एक बरगद के पेड़ के नीचे उन्हें फांसी पर लटकाया गया था। मिली जानकारी के मुताबिक बरगद के इस पेड़ के एक टहनी पर 50 क्रांतिकारियों को लटकाया गया था। जिससे पेड़ की डाली टूट गयी और फिर अंग्रेजो ने उन्हें फिर से दूसरी डाल पर लटका कर फांसी दी गयी। परन्तु समय बदला और पेड़ सुख गया और उसे काट दिया गया, जिसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है।

हाफिज रहमत खान का मकबरा (Tomb of Hafiz Rahmat Khan)?

मुग़ल शाशन काल के समय रुहेलखंड एक स्वतंत्र राज्य बनकर उभरा। जिसकी राजधानी बरेली को बनाया गया। बात 1940 के वक़्त की है जब अली मुहम्मद को शासक बनाया गया और उनके द्वारा राजधानी बरेली को आवला में ट्रांसफर या स्थानांतरित कर दिया। 1749 अली मुहम्मद के इंतकाल के बाद उनके बेटो के देखभाल करने वाले हाफिज रहमत खान को रुहेलखंड का शासक बनाया गया। सन 1774 शुआउदौला और ब्रिटिश कंपनी की संयुक्त सेना से युद्ध में हाफिज हार गए और उन्होंने मिरानपुर कटरा में जाके उन्होंने अपने प्राणो का त्याग कर दिया। उनका मकबरा आज भी हुसैन बाग में मौजूद है।

कुछ यू बदल रही है अपने बरेली की तस्वीर Some u Are Changing the Picture of Your Bareilly
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ब्रिटिश काल में ब्रिटिशर थॉमस एंड विलियम ने 22 मई 1789 को उनके मकबरे की बहुत ही सुन्दर पेंटिंग बनवाई थी। जिसको उनके आसपास के इलाको में दर्शया गया था। लेकिन वक़्त के साथ अब इस मकबरे की हालत भी बेहद नाज़ुक हो चली है। दीवारे उखड चुकी है और सिर्फ अब एक गेट और मकबरे का कुछ हिस्सा ही बाकी रह गया है। जोकि पहचान के रूप में मौजूद है। मकबरे वाली जगह पर लोगो के द्वारा अवैध कब्ज़ा कर लिया गया है। हालाँकि प्रशासन द्वारा इसे संरक्षित करने का कई बार प्रयास किया गया जो कि विफल रहा।

कोतवाली (Kotwali)?

कोतवाली सभी ने देखा होगा जोकि अपने शहर के लगभग बीचो-बीच में मौजूद है। ब्रिटिश काल के समय में कुतुबखाना से शास्त्री मार्किट की तरफ जाने वाले मार्ग पर अक़ब कोतवाली स्थित थी। ये वही जगह है जहा पर 1860 में रुहेला सरदार नवाब खान बहादुर खान को अंग्रेजो ने सबके सामने फांसी दे दी गयी थी।

अंग्रेजो की सरकार में पेंशनर होने के बाद भी उनके द्वारा 1857 में क्रांति का बिगुल फुका और क्रांतिकारिओं के नेतृत्व कर स्वतंत्रता के इस आंदोलन को एक अन्य आयाम दिया। उन पर कार्यवाहक कमिश्नर रुखेलखण्ड डब्ल्यू राबर्ट, मुरादाबाद के जज ए शेक्शपीयर जज, और बरेली के जज ए वनिस्ट्रेट के द्वारा उनपर मुकदमा चलाया गया।

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लगभग साल भर रुहेलखंड को अंग्रेजो की गुलामी से आजाद रखने वाले रुखेला सरदार नवाब खान बहादुर खान को जिस अक़ब कोतवाली में फांसी दी गयी थी वह भवन अब पूरी तरह से खस्ताहाल की स्थिति में है। जिसके अंतर्गत पुरानी कोतवाली के कुछ हिस्सों में से दो मीनारे पश्चिम और पूर्व और ऊपरी दिशा में कंगूरे दिखाई देते है। इसमें आज भी कुछ दुकाने चलती है। परन्तु समय बदला और अब यह छेत्र की चपेट में आ चूका है। भवन की स्थित गिरताऊ हालत में है। जिसका कुछ ऊपरी हिस्सा गिर भी चूका है।

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